Wednesday, 16 September 2015

शब्द ब्रह्म हैं लेकिन भ्रमजाल भी बहोत फैलाता हैं।
आत्मा बाटने की सम्पदा हैं बेचने की नहीं।
बुद्धि तो व्यभिचारिणी भी रह सकती हैं।
हम सबकी प्रवृत्तियाँ आसमान को छू रही हैं।
योग में सदैव निरोध की महिमा हैं।
ज्ञान मार्ग का सूत्र हैं की बोध प्रकट हों।
कर्म मार्ग में अवरोध ही अवरोध हैं।
भक्ति मार्ग का सूत्र हैं प्रेम से केवल अनुरोध।
कर्म करों वजनदार मत होवो।
सुख की कोई सीमा नहीं प्रसन्नता बिलकुल नहीं
साधन तो बहुत हैं साधना बिलकुल नहीं

मन क्रम बचन छाड़ि चतुराई
भजत कृपा करिहै रघुराई

Wednesday, 18 April 2012

मोरारी बापू की वाणी में श्री हनुमान चालीसा

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जय सियाराम

Thursday, 5 April 2012

मोरारी बापू की वाणी में सम्पूर्ण सुन्दर कांड (हिंदी भाषा में) उनके भाष्य सहित

मोरारी बापू की वाणी में सम्पूर्ण सुन्दर कांड (हिंदी भाषा में) उनके भाष्य सहित आप निम्न लिंक से नि:शुल्क प्राप्त कर सकते है.

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जय सियाराम

Friday, 2 March 2012

मोरारी बापू की वाणी में सम्पूर्ण राम कथा (सरल गुजराथी भाषा में)

मोरारी बापू की वाणी में सम्पूर्ण राम कथा (सरल गुजराथी भाषा में) आप निम्न लिंक से नि:शुल्क प्राप्त कर सकते है.
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जय सियाराम

Sunday, 19 February 2012

नागपुर राम कथा २०१२

रामायण का सूत्र है की संघर्ष करके कोई भी वस्तु का निर्णय न करे.
संघर्ष में चित्त वृत्ति ठीक नहीं होती.
चित्त द्वंद्व  में भटक जाता है.

हम कथा में विषय पर चर्चा करते है या प्रसंग पर चर्चा करते है.

असत्य महा पाप है.

जप न करे तो चिंता नहीं स्मरण करे.

गीता के अनुसार स्म्रुतिर्लब्ध्वा

संघर्ष रहित + स्मरण + भाव = करुणा

३ काम करे - राम कथा सुने, गुनगुनाये,  स्मरण करे.

विस्मरण महा विपत्ति है.

पाप लोहे की जंजीर है, पुण्य सोने की है.

साधक ऊपर से भव्य भीतर से दिव्य बने.

इस कथा का नाम रखा है मानस मंगल मूर्ति.

मंगल मूर्ति का एक अर्थ है सभी मूर्तियों का सम्मिलन.

कुपथ का निवारण करने के लिए अच्छे मित्र का संग करे, उजाले में जिए, सूर्य का एक नाम मित्र है.

कुतर्क के निवारण के लिए जिसमे भेद न हो ऐसे महापुरुष के चरणों में प्रीति रहे.

कुचाली का अर्थ है कपट, जिसपर कलंक लग गया. इसके निवारण के लिए निंदक को निकट रखे.

कथा सुनने के दो कान है मर्मज्ञ और रसज्ञ.

छोटे बच्चो को माँ बाप १. समय  २. समझ  ३. स्नेह  ४. सन्मान दे.

सहस विवेक की छाया में होना चाहिए.

मंगल मूर्ति के छह गुण  (छगन) -
१. लोगो को अभिराम दे.
२. रण में धैर्य रखे, घर बैठकर धैर्य रखना किसी काम का नहीं.
३. असंग रहे कमल के फूल के समान.
४. लोगो को स्वामित्व अर्थात नाथत्व की छाया प्रदान करे.
५. ह्रदय में करुणा रहे.
६. व्यवहार में चन्द्रमा के सामान शीतलता रहे.

वाग्विलास भ्रमित करता है.

हनुमान चालीसा स्थिर होकर करने से ही फल देगा ऐसा नहीं है, हनुमान स्वयं चंचल है.

निर्भय और निर्लोभ होकर हनुमान चालीसा करे.

अभ्यास और सहजता परस्पर विरोधी है.

प्रयास और प्रसाद परस्पर विरोधी है.

उर्जाहीन और उर्जा परस्पर विरोधी है.

उपनिषद् में लिखा है की एक तत्व ही ३ हुआ, फिर पांच हुआ, फिर ७, ९, ११ हुआ फिर एक हुआ.

वह एक तत्व राम है. वही भरत, लक्षमण और शत्रुघ्न हुआ. सीता और हनुमान हुआ. नाम और रूप हुआ. लीला और धाम हुआ. वही निर्गुण और सगुण है. बापू के अनुसार उपनिषदों के ११ तत्व यही है.

बेबस की तबाही के सामान हजारो है
दीपक है तो अकेला तूफ़ान हजारो है

दुखदर्द जलन आहे क्या क्या न दिया हमको
भगवान तेरे हमपर एहसान हजारो है

जब कोई जग को अभिराम देता है तो राम को अभिषेक करता है.

बड़ा अजीब है सिलसिला उसकी मुहोब्बत का
न उसने कैद में रक्खा न हम फरार हो पाए

संत प्रभावित नहीं प्रकाशित करते है.

शादी करने के बाद शिव पार्वती विवाह का कुछ दिन पारायण करे, संतान भी अच्छी होगी.

मंगल माने  शुभ. लाभ हरदम शुभ नहीं होता.

व्यासपीठ न्यायालय नहीं औषधालय है.

शुभ को सदैव लाभ समझो.

जबरदस्ती हिंसा है.

चिंतन सहजता से होना चाहिए.

लाभ दो कौड़ी का है.

शुभ को प्रधानता दो. थोडा शुभ भी बड़ा लाभ है.

 वो जिस रोज अपना मुझे मान लेगा
समझ लो उसी दिन मेरी जान लेगा

बचने में लाभ, मरने में शुभ है.

तारे वो धर्मगुरु मारे वो सद्गुरु.

जो घर फुके आपणा चले हमारे साथ

ना धर्मगुरु ना धर्मं भीरु.

सद्गुरु महामृत्यु है.

मरो हे जोगी मरो मरण है मीठा

यूँ कहने से पहले बहोत सोचता है
मैं जो भी कहूँगा सब मान लेगा

लाभ कही बोझ न बन जाए.

मंगल माने निर्वाण, तृप्ति, डकार, अब न कुछ चाहिए

मंगल माने कल्याण, शिव.

वो करता सबकी हिफाजत तो देखो
फकीरी की उसकी तुम ताकत तो देखो
जहा भी रहेगा उसीका रहेगा
मुहोब्बत की उसकी रियासत तो देखो
सभी को बिलकुल अपनासा लगता
है उसमे तुम कितनी मुहोब्बत तो देखो

मंगल का म माने मंत्र मयी जीवन.
ग माने जरासा भी गर्व नहीं नाम का, रूप का.
ल माने जो लक्षण से, संकेत से समझाया जाता है.

हरी अमृत त्याग से मिलता है.

भोगवादियो सेवा का व्रत लेने से राम प्रकट होंगे.

पुरुषार्थ + दहशत = कुछ नहीं
प्रार्थना + मेहनत =  कुछ कुछ
प्रतीक्षा + रहमत = बहोत कुछ

राम कथा का मूल मंत्र है मनुष्य बनो.
सत्य के साथ विवेक जरुरी.
स्थूलता काम की नहीं.
महात्मा गांधी के कारण झूट बोलने से ग्लानी होती है.
नुक्सानदायी सत्य गोपनीय रहे.
तुम अपनी एक सृष्टि बनाओ, उधार में मत जियो.

सत्य शानदार हो धारदार नहीं.

सत्य का ठिकाना बहोत ऊँचा है, फिसलना नहीं.

सत्य को दुसरे की जरुरत नहीं.

वेग में आवाज होती है, गति गुप्त होती है. आवेश और आवेग में अंतर है. हनुमान के  अंतर्गति की साधना करे, वेगवान रूप की नहीं.

वेद के अनुसार हम पृथ्वी की संतान है. सूर्य की संतान है. प्राण की संतान है.

प्राणायाम से प्राण बल बढ़ता है. शारीरिक लाभ भी है.

आँख, जीभ और ह्रदय अमृत के स्थान है.

जिसमे इन स्थानों पर अमृत है, वह मंगलमूर्ति है.

उसने देखते ही मुझे दूवाओ से भर दिया
मैंने तो अभी सजदा भी नहीं किया था

सादगी शृंगार हो गयी, आयनों की हार हो गयी.

व्यक्ति के हाथो में ममता हो, ह्रदय में शौर्य हो और आँखों में व्यापकता हो.

कौसल्या माने ज्ञान, विवेक. कैकेयी माने कर्म और सुमित्रा माने उपासना.

काल, स्वभाव, गुण और कर्म ये दुःख के मूल है.

इरादा छोडिये अपनी हदों से दूर जाने का
जमाना है ज़माने की नजर में ना आने का

आप भ्रुतुहरी की तरह सब छोड़ के नहीं जा सकते. भ्रुतुहरी एक होता है, उसकी परंपरा नहीं होती.

हमारी परंपरा के अनुसार. वार्णार्थ  माने एक वर्ण का अर्थ.
शब्दार्थ माने शब्द का अर्थ. उसी प्रकार वाक्यार्थ.
पदार्थ माने पद का अर्थ. बीज, पंचक, शष्टक, अष्टक.
बुद्धि से प्रज्ञा ऊपर, विवेक से परम विवेक ऊपर. मंगल मूर्ति में प्रज्ञा और विवेक होता है.
सनातनी गंगोत्री से निकला अक्षर ब्रह्म है.

इश्क का जोक-ए-नजारा मुफ्त में बदनाम है
हुस्न खुद बेताब है जलवे दिखाने के लिए

कुछ तो उनकी निगाहें काफ़िर थी
कुछ मुझे भी ख़राब होना था

फिर मिली आँख हो गयी नमनाक
फिर किसीने मेरा मिजाज पूछा

जहा रस है वहा ज्ञान है.

गणेश जी का पेट बड़ा है इसका मतलब है बर्दाश्त करो, पेट में रखो.
कान बड़े है मतलब सब का सुनो.
दौड़ कम है मतलब भोगो के पीछे मत भागो.
मोदक आनंद देने वाला. मोद देने वाला. जैसे चिन्तक, दर्शक, वाचक
गणेश सब जानते है, लिखते है.

शब्द तो पर्दा है छुपाने के लिए.

मूर्ति का मू माने मूक सब जानो चुप रहो.
र माने रक्षण करो.
ती माने त्रिभुवन

शुभ करे, शुद्ध करे, यदि हम विषयी है तो चाहे हुए योग्य कार्यो की सिद्धि करे.
सिर्फ कार्य में सिद्धि नहीं विवेक की सिद्धि.
गण नायक  माने गण तंत्र का नायक.

मुहोब्बत तेरे अंजाम पे रोना आया.

कितनी हिस्सों में बटा हु मैं
कोई हिस्सा बचा भी नहीं
जिंदगी से बढ़कर सजा भी नहीं

जिंदगी के उसूल होते है
आप नाहक मलूल होते है

मैं मुश्किल में हूँ आप मशवरा दीजे
कहा से शुरू करू कहा तमाम करू

योगी दर्शनं मूर्ति मंगलम

शब् भर रहा ख्याल में तकिया फकीर का
दिनभर सुनाऊंगा तुम्हे किस्सा फकीर का

 

Sunday, 5 February 2012

श्रीराम कथा से ...

श्रीराम कथा से ...
तीर्थो की अपेक्षाए पूर्ण करो.
स्नान करने की महिमा है, पूजन की है, दान की है.
तीर्थ सबसे बड़ी तो यह अपेक्षा रखता है की हम हंस बने बगुले नहीं.
इर्द गिर्द की बाते छोडो, रूचि का रक्षण करो.
मौन रहेंगे तो शब्द छूटेगा
एकांत में रहेंगे तो संग छूटेगा
आँख बंद करके ध्यान करेंगे तो विचार छूटेगा
समाधी लगेगी तो स्वयं छूटेगा, आपापना छूटेगा
भीड़ नहीं है, तुम अन्दर से पैदा कर रहे हो.
कैलाश मानसरोवर में दो वस्तु सीखे. कैलाश की ऊंचाई और मानसरोवर की गहराई. जीवन विवेक की ऊंचाई, भाव की गहराई.

Sunday, 29 January 2012

गुड़गाँव राम कथा के कुछ बिंदु

भगवान राम को जब वनवास हुआ तो उन्हें एक भी ऋषि मुनि ने राज महल को लौट जाने के लिए नहीं कहा. ऋषि मुनि तो चाहते है की राम दुरितो और वंचितों के बिच रहे, राज महलों में नहीं.

बुद्धि बाहर की और जाने वाली चेतना है. श्रद्धा अंतर्मुखी चेतना है. सती दक्ष की पुत्री है. वह बहोत तर्क वितर्क करती है और राम का अस्तित्व प्रमाणित करना चाहती है. वह बुद्धि का प्रतीक है. जब यह बुद्धि यज्ञ में आहूत हो जाती है तो अंतर्मुखी चेतना बन जाती है. पार्वती श्रद्धा का प्रतीक है.

भगवान राम के पास ऐसा सुख है जो काल, देश और व्यक्ति निरपेक्ष है.
राम को जब महाराज दशरथ ने कहा की कल उनका राज्याभिषेक होने वाला है तो उनमे उतनी  ही सुख और प्रसन्नता थी जितनी उनको कैकयी माता ने वनवास की आज्ञा करने पर थी.
राम वन में भी उतने ही सुखी और प्रसन्न थे जितने वो अयोध्या में थे.
राम कैकेयी माता से बात करते वक़्त उतने ही सुखी और प्रसन्न रहते थे जितने वे लक्ष्मण के साथ होने से रहते थे.