रामायण का सूत्र है की संघर्ष करके कोई भी वस्तु का निर्णय न करे.
संघर्ष में चित्त वृत्ति ठीक नहीं होती.
चित्त द्वंद्व में भटक जाता है.
हम कथा में विषय पर चर्चा करते है या प्रसंग पर चर्चा करते है.
असत्य महा पाप है.
जप न करे तो चिंता नहीं स्मरण करे.
गीता के अनुसार स्म्रुतिर्लब्ध्वा
संघर्ष रहित + स्मरण + भाव = करुणा
३ काम करे - राम कथा सुने, गुनगुनाये, स्मरण करे.
विस्मरण महा विपत्ति है.
पाप लोहे की जंजीर है, पुण्य सोने की है.
साधक ऊपर से भव्य भीतर से दिव्य बने.
इस कथा का नाम रखा है मानस मंगल मूर्ति.
मंगल मूर्ति का एक अर्थ है सभी मूर्तियों का सम्मिलन.
कुपथ का निवारण करने के लिए अच्छे मित्र का संग करे, उजाले में जिए, सूर्य का एक नाम मित्र है.
कुतर्क के निवारण के लिए जिसमे भेद न हो ऐसे महापुरुष के चरणों में प्रीति रहे.
कुचाली का अर्थ है कपट, जिसपर कलंक लग गया. इसके निवारण के लिए निंदक को निकट रखे.
कथा सुनने के दो कान है मर्मज्ञ और रसज्ञ.
छोटे बच्चो को माँ बाप १. समय २. समझ ३. स्नेह ४. सन्मान दे.
सहस विवेक की छाया में होना चाहिए.
मंगल मूर्ति के छह गुण (छगन) -
१. लोगो को अभिराम दे.
२. रण में धैर्य रखे, घर बैठकर धैर्य रखना किसी काम का नहीं.
३. असंग रहे कमल के फूल के समान.
४. लोगो को स्वामित्व अर्थात नाथत्व की छाया प्रदान करे.
५. ह्रदय में करुणा रहे.
६. व्यवहार में चन्द्रमा के सामान शीतलता रहे.
वाग्विलास भ्रमित करता है.
हनुमान चालीसा स्थिर होकर करने से ही फल देगा ऐसा नहीं है, हनुमान स्वयं चंचल है.
निर्भय और निर्लोभ होकर हनुमान चालीसा करे.
अभ्यास और सहजता परस्पर विरोधी है.
प्रयास और प्रसाद परस्पर विरोधी है.
उर्जाहीन और उर्जा परस्पर विरोधी है.
उपनिषद् में लिखा है की एक तत्व ही ३ हुआ, फिर पांच हुआ, फिर ७, ९, ११ हुआ फिर एक हुआ.
वह एक तत्व राम है. वही भरत, लक्षमण और शत्रुघ्न हुआ. सीता और हनुमान हुआ. नाम और रूप हुआ. लीला और धाम हुआ. वही निर्गुण और सगुण है. बापू के अनुसार उपनिषदों के ११ तत्व यही है.
बेबस की तबाही के सामान हजारो है
दीपक है तो अकेला तूफ़ान हजारो है
दुखदर्द जलन आहे क्या क्या न दिया हमको
भगवान तेरे हमपर एहसान हजारो है
जब कोई जग को अभिराम देता है तो राम को अभिषेक करता है.
बड़ा अजीब है सिलसिला उसकी मुहोब्बत का
न उसने कैद में रक्खा न हम फरार हो पाए
संत प्रभावित नहीं प्रकाशित करते है.
शादी करने के बाद शिव पार्वती विवाह का कुछ दिन पारायण करे, संतान भी अच्छी होगी.
मंगल माने शुभ. लाभ हरदम शुभ नहीं होता.
व्यासपीठ न्यायालय नहीं औषधालय है.
शुभ को सदैव लाभ समझो.
जबरदस्ती हिंसा है.
चिंतन सहजता से होना चाहिए.
लाभ दो कौड़ी का है.
शुभ को प्रधानता दो. थोडा शुभ भी बड़ा लाभ है.
वो जिस रोज अपना मुझे मान लेगा
समझ लो उसी दिन मेरी जान लेगा
बचने में लाभ, मरने में शुभ है.
तारे वो धर्मगुरु मारे वो सद्गुरु.
जो घर फुके आपणा चले हमारे साथ
ना धर्मगुरु ना धर्मं भीरु.
सद्गुरु महामृत्यु है.
मरो हे जोगी मरो मरण है मीठा
यूँ कहने से पहले बहोत सोचता है
मैं जो भी कहूँगा सब मान लेगा
लाभ कही बोझ न बन जाए.
मंगल माने निर्वाण, तृप्ति, डकार, अब न कुछ चाहिए
मंगल माने कल्याण, शिव.
वो करता सबकी हिफाजत तो देखो
फकीरी की उसकी तुम ताकत तो देखो
जहा भी रहेगा उसीका रहेगा
मुहोब्बत की उसकी रियासत तो देखो
सभी को बिलकुल अपनासा लगता
है उसमे तुम कितनी मुहोब्बत तो देखो
मंगल का म माने मंत्र मयी जीवन.
ग माने जरासा भी गर्व नहीं नाम का, रूप का.
ल माने जो लक्षण से, संकेत से समझाया जाता है.
हरी अमृत त्याग से मिलता है.
भोगवादियो सेवा का व्रत लेने से राम प्रकट होंगे.
पुरुषार्थ + दहशत = कुछ नहीं
प्रार्थना + मेहनत = कुछ कुछ
प्रतीक्षा + रहमत = बहोत कुछ
राम कथा का मूल मंत्र है मनुष्य बनो.
सत्य के साथ विवेक जरुरी.
स्थूलता काम की नहीं.
महात्मा गांधी के कारण झूट बोलने से ग्लानी होती है.
नुक्सानदायी सत्य गोपनीय रहे.
तुम अपनी एक सृष्टि बनाओ, उधार में मत जियो.
सत्य शानदार हो धारदार नहीं.
सत्य का ठिकाना बहोत ऊँचा है, फिसलना नहीं.
सत्य को दुसरे की जरुरत नहीं.
वेग में आवाज होती है, गति गुप्त होती है. आवेश और आवेग में अंतर है. हनुमान के अंतर्गति की साधना करे, वेगवान रूप की नहीं.
वेद के अनुसार हम पृथ्वी की संतान है. सूर्य की संतान है. प्राण की संतान है.
प्राणायाम से प्राण बल बढ़ता है. शारीरिक लाभ भी है.
आँख, जीभ और ह्रदय अमृत के स्थान है.
जिसमे इन स्थानों पर अमृत है, वह मंगलमूर्ति है.
उसने देखते ही मुझे दूवाओ से भर दिया
मैंने तो अभी सजदा भी नहीं किया था
सादगी शृंगार हो गयी, आयनों की हार हो गयी.
व्यक्ति के हाथो में ममता हो, ह्रदय में शौर्य हो और आँखों में व्यापकता हो.
कौसल्या माने ज्ञान, विवेक. कैकेयी माने कर्म और सुमित्रा माने उपासना.
काल, स्वभाव, गुण और कर्म ये दुःख के मूल है.
इरादा छोडिये अपनी हदों से दूर जाने का
जमाना है ज़माने की नजर में ना आने का
आप भ्रुतुहरी की तरह सब छोड़ के नहीं जा सकते. भ्रुतुहरी एक होता है, उसकी परंपरा नहीं होती.
हमारी परंपरा के अनुसार. वार्णार्थ माने एक वर्ण का अर्थ.
शब्दार्थ माने शब्द का अर्थ. उसी प्रकार वाक्यार्थ.
पदार्थ माने पद का अर्थ. बीज, पंचक, शष्टक, अष्टक.
बुद्धि से प्रज्ञा ऊपर, विवेक से परम विवेक ऊपर. मंगल मूर्ति में प्रज्ञा और विवेक होता है.
सनातनी गंगोत्री से निकला अक्षर ब्रह्म है.
इश्क का जोक-ए-नजारा मुफ्त में बदनाम है
हुस्न खुद बेताब है जलवे दिखाने के लिए
कुछ तो उनकी निगाहें काफ़िर थी
कुछ मुझे भी ख़राब होना था
फिर मिली आँख हो गयी नमनाक
फिर किसीने मेरा मिजाज पूछा
जहा रस है वहा ज्ञान है.
गणेश जी का पेट बड़ा है इसका मतलब है बर्दाश्त करो, पेट में रखो.
कान बड़े है मतलब सब का सुनो.
दौड़ कम है मतलब भोगो के पीछे मत भागो.
मोदक आनंद देने वाला. मोद देने वाला. जैसे चिन्तक, दर्शक, वाचक
गणेश सब जानते है, लिखते है.
शब्द तो पर्दा है छुपाने के लिए.
मूर्ति का मू माने मूक सब जानो चुप रहो.
र माने रक्षण करो.
ती माने त्रिभुवन
शुभ करे, शुद्ध करे, यदि हम विषयी है तो चाहे हुए योग्य कार्यो की सिद्धि करे.
सिर्फ कार्य में सिद्धि नहीं विवेक की सिद्धि.
गण नायक माने गण तंत्र का नायक.
मुहोब्बत तेरे अंजाम पे रोना आया.
कितनी हिस्सों में बटा हु मैं
कोई हिस्सा बचा भी नहीं
जिंदगी से बढ़कर सजा भी नहीं
जिंदगी के उसूल होते है
आप नाहक मलूल होते है
मैं मुश्किल में हूँ आप मशवरा दीजे
कहा से शुरू करू कहा तमाम करू
योगी दर्शनं मूर्ति मंगलम
शब् भर रहा ख्याल में तकिया फकीर का
दिनभर सुनाऊंगा तुम्हे किस्सा फकीर का