Wednesday 16 September 2015

शब्द ब्रह्म हैं लेकिन भ्रमजाल भी बहोत फैलाता हैं।
आत्मा बाटने की सम्पदा हैं बेचने की नहीं।
बुद्धि तो व्यभिचारिणी भी रह सकती हैं।
हम सबकी प्रवृत्तियाँ आसमान को छू रही हैं।
योग में सदैव निरोध की महिमा हैं।
ज्ञान मार्ग का सूत्र हैं की बोध प्रकट हों।
कर्म मार्ग में अवरोध ही अवरोध हैं।
भक्ति मार्ग का सूत्र हैं प्रेम से केवल अनुरोध।
कर्म करों वजनदार मत होवो।
सुख की कोई सीमा नहीं प्रसन्नता बिलकुल नहीं
साधन तो बहुत हैं साधना बिलकुल नहीं

मन क्रम बचन छाड़ि चतुराई
भजत कृपा करिहै रघुराई

1 comment:

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