हम भीतर के कैलाश की ओर चले.
भीतर की तबियत बिगड़े तो क्या करे.
सिकंदर ने उसके लोगो को वह मर जाने के बाद ३ सूचनाओ का पालन करने को कहा था.
१. उसकी अर्थी को चार डॉक्टर उठाये. आदमी कितना भी रहिस क्यों न हो और उसे कितने ही डॉक्टर की निगरानी में क्यों न रखा जाए उसे मृत्यु तो आती ही है.
२. उसकी दौलत को मरने के बाद सरे आम उड़ेल दिया जाय. उसने हासिल भी लोगो से किया था सो वो उनको लौटाना चाहता था.
३. उसके दोनों हाथो को जनाजे के बाहर रखना, खाली. तात्पर्य वह आया भी खाली हाथ था और जा भी खाली हाथ रहा है. कुछ लोग ऐसा भी कहते है की जिंदगी भर मांगने से भी उसकी तसल्ली नहीं हुई सो वह जाते वक़्त भी मांगना चाहता था हाथ पसारकर. यह एक विनोद की बात है.
ज्ञान विज्ञान से तृप्ति हुए बिना तसल्ली नहीं होती. ऐसा भगवत गीता कहती है. गीता और रास्ते भी दिखाती है.
मृत्यु आने पर उपाय, निष्कर्ष या अंतिम परिणाम नहीं होता है.
भीतर की बीमारी के लिए हरिनाम ही जरुरी है. औषधि काम नहीं करती है.
शुभ भाषा का प्रयोग भीतरी और शरीरी स्वास्थय के लिए अच्छा है. शुभ भाव और शुभ दर्शन भी स्वास्थ्य के लिए अच्छा है.
कैलाश में कथा करना या ७०० कथा करना यह कोई रिकार्ड बनाने के लिए नहीं किया गया. यहाँ तो सबके रिकार्ड टूटते है.
पीछे वालो से मत कहो की मै आगे हूँ. आगे बहोत लोग है.
७०० नाम इसलिए की मानस में ७ सोपान है.
राम चरित मानस में ११ बार कैलास शब्द प्रयुक्त हुआ है.
इतिहास तथ्यों की खोज में होता है तो अध्यात्म सत्य की.
हनुमान चालीसा का अनुष्ठान करने वाला शुद्ध होता है. विश्व को सिद्धो की नहीं, शुद्धो की जरुरत है.
तुलसीदासजी ने हनुमान चालीसा का समापन कैलाश में किया. राम चरित मानस का समापन चित्रकूट या काशी में हुआ. उसका प्रकाशन अयोध्या में हुआ.
सिर्फ कन्या की ही परीक्षा नहीं, लड़के की भी परीक्षा करे. इसका आधार है राम चरित मानस, सीता का स्वयंवर हुआ था.
हनुमान ११ वे रूद्र है.
हनुमान चालीसा से -
१. व्यक्ति प्राणवान हो जाता है.
२. सिद्धवान हो जाता है.
३. उसमे असंगता आती है.
४. वैराग्य आता है.
५. ज्ञानवान हो जाता है.
दुखो की निवृत्ति वैराग्य के बिना संभव नहीं.
मै पूजा नहीं करता, प्रेम करता हूँ. इसीलिए तो कहता हूँ की सद्गुरु भगवान प्रिय हो.
आप हनुमान चालीसा का अनुष्ठान चाहे न कर सके, जो कर रहा है उसकी आलोचना न करे.
प्रयत्न से नहीं होता. मांगने से आशीर्वाद या आश्वासन मिल सकता है.
बात तो अनुग्रह से बनती है.
शरणागति के पथ पर अनुग्रह के सिवा चारा नहीं.
कबीरा कुआ एक है, पनिहारी अनेक |
बर्तन सब न्यारे भये, पानी सब में एक ||
नदी से जब पूछा गया की जीवन क्या है, जवाब नहीं दिया बह गयी. बहना ही जीवन है.
जगतगुरु आदि शंकराचार्य कहते है की गुरु के और वेदांत के वाक्य में विश्वास ही श्रद्धा है.
मेरी व्यासपीठ एक श्वासपीठ है.
राम भरत से कहते की हनुमान ने कभी मेरी आज्ञा नहीं तोड़ी. गुरु की आज्ञा ही गुरु का प्रसाद है. गुरु कभी गलत आज्ञा नहीं करता.
साधू एक अलग वेश में क्यों रहते है १. वेश देखकर सामने वाला जान जायेगा और विक्षेप नहीं करेगा. २. स्वयं को निरंतर सावधान करने के लिए. ३. शरीर की सुरक्षा के लिए.
संत मठ का नहीं मन का महंत होता है.
साधू वह जिसके आँखों में प्रेम, करुणा है. चलाखी, शोषण नहीं.
प्रेम जब क्रियान्वित होता है, करुणा बन जाता है.
बर्फ पिघलने से ही जीवन दाता बनता है.
घनीभूत प्रेम जब पिघलता है तो जीवनदायी करुणा बनता है.
साधू की जबान में सत्य होता है, जहा सत्य का उच्चारण मंगलमय नहीं वहा मौन.
कृष्ण ने कर्ण से कहा की तू ज्येष्ठ पांडव है और तू पांडवो के सभी अधिकार प्राप्त कर सकता है. कर्ण कहता है कुछ सत्य अनकहे ही अच्छे होते है. अब मै पांडवो से कैसे लडूंगा, मेरी माँ के प्रति ही मुझ में घृणा हो गयी.
संत का नारायण उसकी जबान पर होता है.
संत के जीवन की गति में लोक मंगल के लिए मर्यादा होती है.
बुद्धि की शुद्धि हरिनाम से होती है.
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