श्री हनुमान जी ने सुग्रीव को बाली के त्रास से बचाया.
जानकी जी को दुःख मुक्त किया. *****सुनत ही सीता कर दुःख भागा
लक्ष्मण जी को संजीवनी दी.
भरतलालजी को प्रभु का समाचार सुनाया.
सीता माता की खोज में भटक रहे प्यासे भूखे भालू, बंदरो को तृप्त किया.
दो बाते बेहद जरूरी है - शरीर की स्थिरता और मन की धीरता.
समझ और समय से स्थिरता और धीरता आती है.
महर्षि रमण कहते है की संयम भी आवश्यक है.
हरी स्मरण से संयम भी मिलता है.
सबसे बड़ी विपत्ति है हरि स्मरण का छूटना.
बिपति प्रभु सोई जब तव सुमिरन भजन न होई.
जो व्यक्ति कामना छोड़कर कुछ समय के लिए राम नाम जपेगा उसे रात दिन राम नाम जपने का फल प्राप्त होगा.
हमने जो संतो से सुना है वही आपको सुनाते है.
गावत संतत संभु भवानी
भजन गाना भी भजन है.
भजन गाती है जीभ भजन करता है जीव.
कह हनुमंत बिपति प्रभु सोई जब तव सुमिरन भजन न होई.
उमा कहु मै अनुभव अपना, सत हरिभजन जगत सब सपना.
मन की तरंग मार लो बस हो गया भजन.
कैलाश का अर्थ है ज्ञान, भक्ति और कर्म.
इन तीनो से ही पूर्णता आती है.
कैकेयी कर्म के पथ का प्रतीक है. ठीक संग न होने पर कर्म भ्रष्ट हो जाता है. कर्म मौन होता है.
कौशल्या विवेक का प्रतीक है. विवेक मुखर होता है.
सुमित्रा भक्ति, सुमिरन का प्रतीक है जो मौन भी है और मुखर भी.
मैत्री यह हाथ तालियों का खेल नहीं है. गाली गलोच नहीं है.
शब्द आसान है, उसका वहन बहोत कठिन है.
मैत्री से वैर जुड़ जाता है. यह मित्र है तो वह शत्रु है.
सुग्रीव की राम से मैत्री निभ गयी, विभीषण की राम से मैत्री निभ गयी क्यों की बीच में हनुमान थे.
जो मित्र का दुःख देखने से दुखी नहीं होता उसका चेहरा देखने से पाप लगता है.
सुभाषितकार भी कहते है की मैत्री दुर्गम है.
राम माने सत्य. सत्य तक पहुचने के लिए हनुमान का अनुग्रह जरूरी है.
प्रेम दुर्गम है.
करुणा दुर्गम है. दया सुगम है. दया तो दिखावे के लिए होती है. बदले में कुछ मिले यह सोच कर होती है.
शंकर दुर्गम है.
करुणा प्रगट होती है भगवान का चरित्र सुनने से.
महर्षि वाल्मीकि ने जब क्रौंच पक्षी के विलाप को सुना तो उन्होंने रामायण की रचना की. रामायण काव्य प्रकटा है शोक से.
राम चरित मानस आनंद से प्रकट हुआ.
गदगद गीरा नयन बह नीरा
मृत्यु दुर्गम है.
कोई निंदा करता है तो उसे यहाँ प्रवेश नहीं है. पीठ पीछे निंदा ना करे. निंदा और स्तुति दंभ युक्त ना हो.
वह पूछते है की आपकी आँख पवित्र है क्या.
किष्किन्धा कांड में केवल विचार है, क्रिया नहीं है. लंका कांड में केवल क्रिया है, विचार नहीं है. सुन्दर कांड में विचार और कर्तुत्व का संयोजन है.
यदि विचार और विश्वास को दो चक्के कहा जाए तो उनके बिच की धरी है विवेक.
अहंकार के जूते बहार रखकर ही मंदिर में प्रवेश संभव है.
जानकी जी को दुःख मुक्त किया. *****सुनत ही सीता कर दुःख भागा
लक्ष्मण जी को संजीवनी दी.
भरतलालजी को प्रभु का समाचार सुनाया.
सीता माता की खोज में भटक रहे प्यासे भूखे भालू, बंदरो को तृप्त किया.
दो बाते बेहद जरूरी है - शरीर की स्थिरता और मन की धीरता.
समझ और समय से स्थिरता और धीरता आती है.
महर्षि रमण कहते है की संयम भी आवश्यक है.
हरी स्मरण से संयम भी मिलता है.
सबसे बड़ी विपत्ति है हरि स्मरण का छूटना.
बिपति प्रभु सोई जब तव सुमिरन भजन न होई.
जो व्यक्ति कामना छोड़कर कुछ समय के लिए राम नाम जपेगा उसे रात दिन राम नाम जपने का फल प्राप्त होगा.
हमने जो संतो से सुना है वही आपको सुनाते है.
गावत संतत संभु भवानी
भजन गाना भी भजन है.
भजन गाती है जीभ भजन करता है जीव.
कह हनुमंत बिपति प्रभु सोई जब तव सुमिरन भजन न होई.
उमा कहु मै अनुभव अपना, सत हरिभजन जगत सब सपना.
मन की तरंग मार लो बस हो गया भजन.
कैलाश का अर्थ है ज्ञान, भक्ति और कर्म.
इन तीनो से ही पूर्णता आती है.
कैकेयी कर्म के पथ का प्रतीक है. ठीक संग न होने पर कर्म भ्रष्ट हो जाता है. कर्म मौन होता है.
कौशल्या विवेक का प्रतीक है. विवेक मुखर होता है.
सुमित्रा भक्ति, सुमिरन का प्रतीक है जो मौन भी है और मुखर भी.
मैत्री यह हाथ तालियों का खेल नहीं है. गाली गलोच नहीं है.
शब्द आसान है, उसका वहन बहोत कठिन है.
मैत्री से वैर जुड़ जाता है. यह मित्र है तो वह शत्रु है.
सुग्रीव की राम से मैत्री निभ गयी, विभीषण की राम से मैत्री निभ गयी क्यों की बीच में हनुमान थे.
जो मित्र का दुःख देखने से दुखी नहीं होता उसका चेहरा देखने से पाप लगता है.
सुभाषितकार भी कहते है की मैत्री दुर्गम है.
राम माने सत्य. सत्य तक पहुचने के लिए हनुमान का अनुग्रह जरूरी है.
प्रेम दुर्गम है.
करुणा दुर्गम है. दया सुगम है. दया तो दिखावे के लिए होती है. बदले में कुछ मिले यह सोच कर होती है.
शंकर दुर्गम है.
करुणा प्रगट होती है भगवान का चरित्र सुनने से.
महर्षि वाल्मीकि ने जब क्रौंच पक्षी के विलाप को सुना तो उन्होंने रामायण की रचना की. रामायण काव्य प्रकटा है शोक से.
राम चरित मानस आनंद से प्रकट हुआ.
गदगद गीरा नयन बह नीरा
मृत्यु दुर्गम है.
हनुमानजी की अनुमति के बिना राम के मंदिर में प्रवेश संभव नहीं. हनुमानजी कुछ प्रश्न पूछते है.
हराम कितना है. यह सत्य का मंदिर है यहाँ असत्य नहीं चलेगा.कोई निंदा करता है तो उसे यहाँ प्रवेश नहीं है. पीठ पीछे निंदा ना करे. निंदा और स्तुति दंभ युक्त ना हो.
वह पूछते है की आपकी आँख पवित्र है क्या.
किष्किन्धा कांड में केवल विचार है, क्रिया नहीं है. लंका कांड में केवल क्रिया है, विचार नहीं है. सुन्दर कांड में विचार और कर्तुत्व का संयोजन है.
यदि विचार और विश्वास को दो चक्के कहा जाए तो उनके बिच की धरी है विवेक.
अहंकार के जूते बहार रखकर ही मंदिर में प्रवेश संभव है.
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