जो भारतीय परंपरा के शास्त्रीय ग्रन्थ है उनमे आदि, मध्य और अंत में एक ही तत्व प्रतिपादित होता है.
ऐसे ग्रंथो को पूर्ण माना जाता है.
हनुमान चालीसा में आदि, मध्य और अंत में शिव तत्त्व का प्रतिपादन किया गया है.
रामायण में प्रेम तत्व का प्रतिपादन किया गया है.
राम चरित मानस में सत्य तत्त्व का प्रतिपादन किया गया है.
हनुमान चालीसा में कहा गया है की ...
सब सुख लहै तुम्हारी चरना, तुम रक्षक कहू को डर ना
इस संसार में जैसा की कुछ लोग कहते है की दुःख ही दुःख है तो ग्रंथो में सुख की चर्चा क्यों है.
यदि सब सारहीन है तो सारभूत की चर्चा क्यों है.
यदि सब विषाद है तो प्रसाद की चर्चा क्यों है.
यह सत्य है की शास्त्र में एक जगह जीवन को दुखालय कहा है पर यह भी सत्य की वहा उस दुखालय को अशाश्वत भी कहा गया है.
आनंद और सुख विरोधी सूत्रों को बिच वाले काल में धर्म में स्थापित किया गया.
आनंद हमारा रूप है. हम अमृत की संतान है.
कभी कभी जो प्रतीत होता है उसका विपरीत ही सत्य होता है. टेढ़े सूत्र में सत्य निर्मित होता है. टेढ़ी ऊँगली से ही घी निकलता है.
एक बहन ने प्रश्न किया है की प्रदोष व्रत का कैलाश में समापन कैसे करे. उत्तर है हरिनाम से.
मै आस्तिक भी नहीं हूँ और नास्तिक भी नहीं हूँ. मै वास्तविक हूँ.
राम चरित मानस अक्षर से प्रारंभ होता है.
हनुमान चालीसा सुख की बात करता है..
सब सुख लहै तुम्हारी चरना, तुम रक्षक कहू को डर ना
राम चरित मानस भी कहता है..
ऐसे ग्रंथो को पूर्ण माना जाता है.
हनुमान चालीसा में आदि, मध्य और अंत में शिव तत्त्व का प्रतिपादन किया गया है.
रामायण में प्रेम तत्व का प्रतिपादन किया गया है.
राम चरित मानस में सत्य तत्त्व का प्रतिपादन किया गया है.
हनुमान चालीसा में कहा गया है की ...
सब सुख लहै तुम्हारी चरना, तुम रक्षक कहू को डर ना
इस संसार में जैसा की कुछ लोग कहते है की दुःख ही दुःख है तो ग्रंथो में सुख की चर्चा क्यों है.
यदि सब सारहीन है तो सारभूत की चर्चा क्यों है.
यदि सब विषाद है तो प्रसाद की चर्चा क्यों है.
यह सत्य है की शास्त्र में एक जगह जीवन को दुखालय कहा है पर यह भी सत्य की वहा उस दुखालय को अशाश्वत भी कहा गया है.
आनंद और सुख विरोधी सूत्रों को बिच वाले काल में धर्म में स्थापित किया गया.
आनंद हमारा रूप है. हम अमृत की संतान है.
कभी कभी जो प्रतीत होता है उसका विपरीत ही सत्य होता है. टेढ़े सूत्र में सत्य निर्मित होता है. टेढ़ी ऊँगली से ही घी निकलता है.
एक बहन ने प्रश्न किया है की प्रदोष व्रत का कैलाश में समापन कैसे करे. उत्तर है हरिनाम से.
मै आस्तिक भी नहीं हूँ और नास्तिक भी नहीं हूँ. मै वास्तविक हूँ.
राम चरित मानस अक्षर से प्रारंभ होता है.
हनुमान चालीसा सुख की बात करता है..
सब सुख लहै तुम्हारी चरना, तुम रक्षक कहू को डर ना
राम चरित मानस भी कहता है..
नहीं दरिद्र सम दुःख जग माहि, कोई संत मिलन सम सुख जग नाही.
जब राम मिथिला में पुष्प वाटिका में पुष्प चुनने के लिए जाते है तो ऐसा कहा गया है की पुष्प पत्तो में ढके होते है और राम उन्हें ढूंढते है.
पत्तो को दल भी कहते है. राम दल में फसे प्रकाश को खोजते है.
राम कहते है की फूल मेरे आने के बाद भी नहीं खिले. फूल कहते है की हम तो सीता के आने के बाद खिलेंगे. भक्ति के बिना आत्मा खिलती नहीं.
शब्द बोझ ने आदमी को गंभीर बना दिया.
मै अपने उसूलो में इतना सख्त नहीं हूँ.
मै वापिस भी आ सकता हूँ मैं गया वक़्त नहीं हूँ.
लैला का क्या नाम लिया और मस्त हुआ.
तू अल्ला अल्ला बोलता है और कोई मस्ती नहीं.
एक नश्वर सौंदर्य से व्यक्ति खिल जाता है और तुम शाश्वत सौंदर्य की बात कहते हो और उदास हो.
हनुमना चालीसा में कहा गया है..
तुम रक्षक कहू को डरना
शास्त्रों के अनुसार आठ भय कहे गए है...
१. मृत्यु का भय.
समृद्ध को मरने से अधिक डर लगता है. मरण का भय मिटता है स्मरण से.
कबीर तो मौत को कहता है...
जिस मरने यह जग डरे, सो मेरे आनंद |
कब मरिहू कब देखिहू, पूरण परमानन्द ||
कबीर ने मृत्यु को गाया, हमने रोया.
मृत्यु नहीं मिटती उसका भय मिटता है.
२. अपकीर्ति का भय. यह भय गीता का सिद्धांत अपनाने से मिटता है. गीता कहती है की निंदा और स्तुति को एक समान मानो. साधू का मार्ग शूरो का मार्ग है.
३. महा व्याधि का भय. इसका उपाय है देह में आसक्ति को समाप्त करना.
४. भविष्य में क्या होगा इसका भय. यह समर्थ की शरणागति से मिटता है. परम पर भरोसा रखो.
५. असफलता का भय. इसको मिटने का उपाय है की परिणाम की मत सोचो. कर्त्तव्य बुद्धि से कर्म करो.
६. पाप का भय. यह अद्वैत दृष्टि से मिटेगा.
७. कुपंथ पर जाने का भय. सत्य से अभय प्राप्त होता है. सत्य को कुछ साबित नहीं करना पड़ता. असत्य का मार्ग भयभीत करता है. सत्संग से विवेक उत्पन्न होगा, विवेक से सदबुद्धि, सदबुद्धि से निर्भयता प्राप्त होगी.
८. शुद्ध प्रेम के समर्पण का भय. जैसे कैकयी को भरत के शुद्ध प्रेम का भय था. उसे लगता था की राम के प्रति जो भरत का प्रेम है उससे उसे राज्य नहीं मिलेगा.
राम तत्व की समीक्षा या परीक्षा नहीं की जाती है. उसकी प्रतीक्षा की जाती है.
मैं मानस मर्मज्ञ नहीं हूँ. राम का मार्ग जाना नहीं जाता. राम चरित मानस का भी नहीं.
गुरुदेव रबिन्द्र नाथ टैगोर कहते है की मैं श्रेष्ठ का चुनाव नहीं कर सकता, श्रेष्ठ मुझे चुन सकता है.
राम अयोध्या में लोगो के घर नहीं गए, बच्चो से बात नहीं की. उन्होंने ऐसा मिथिला में किया, भक्ति के नाते.
राम नाम का फल समाधी है, समाधी का फल राम नाम है.
जब आप उद्विग्न होते है तो राम गुण गान करे, सतसंग करे या अकेले बैठकर हरि स्मरण करे.
शिव तत्व द्वार पर होता है और भक्ति तत्व घर में होता है पर उसका संयोग करने के लिए नारद जैसा सदगुरु चाहिए.
पत्तो को दल भी कहते है. राम दल में फसे प्रकाश को खोजते है.
राम कहते है की फूल मेरे आने के बाद भी नहीं खिले. फूल कहते है की हम तो सीता के आने के बाद खिलेंगे. भक्ति के बिना आत्मा खिलती नहीं.
शब्द बोझ ने आदमी को गंभीर बना दिया.
मै अपने उसूलो में इतना सख्त नहीं हूँ.
मै वापिस भी आ सकता हूँ मैं गया वक़्त नहीं हूँ.
लैला का क्या नाम लिया और मस्त हुआ.
तू अल्ला अल्ला बोलता है और कोई मस्ती नहीं.
एक नश्वर सौंदर्य से व्यक्ति खिल जाता है और तुम शाश्वत सौंदर्य की बात कहते हो और उदास हो.
हनुमना चालीसा में कहा गया है..
तुम रक्षक कहू को डरना
शास्त्रों के अनुसार आठ भय कहे गए है...
१. मृत्यु का भय.
समृद्ध को मरने से अधिक डर लगता है. मरण का भय मिटता है स्मरण से.
कबीर तो मौत को कहता है...
जिस मरने यह जग डरे, सो मेरे आनंद |
कब मरिहू कब देखिहू, पूरण परमानन्द ||
कबीर ने मृत्यु को गाया, हमने रोया.
मृत्यु नहीं मिटती उसका भय मिटता है.
२. अपकीर्ति का भय. यह भय गीता का सिद्धांत अपनाने से मिटता है. गीता कहती है की निंदा और स्तुति को एक समान मानो. साधू का मार्ग शूरो का मार्ग है.
३. महा व्याधि का भय. इसका उपाय है देह में आसक्ति को समाप्त करना.
४. भविष्य में क्या होगा इसका भय. यह समर्थ की शरणागति से मिटता है. परम पर भरोसा रखो.
५. असफलता का भय. इसको मिटने का उपाय है की परिणाम की मत सोचो. कर्त्तव्य बुद्धि से कर्म करो.
६. पाप का भय. यह अद्वैत दृष्टि से मिटेगा.
७. कुपंथ पर जाने का भय. सत्य से अभय प्राप्त होता है. सत्य को कुछ साबित नहीं करना पड़ता. असत्य का मार्ग भयभीत करता है. सत्संग से विवेक उत्पन्न होगा, विवेक से सदबुद्धि, सदबुद्धि से निर्भयता प्राप्त होगी.
८. शुद्ध प्रेम के समर्पण का भय. जैसे कैकयी को भरत के शुद्ध प्रेम का भय था. उसे लगता था की राम के प्रति जो भरत का प्रेम है उससे उसे राज्य नहीं मिलेगा.
राम तत्व की समीक्षा या परीक्षा नहीं की जाती है. उसकी प्रतीक्षा की जाती है.
मैं मानस मर्मज्ञ नहीं हूँ. राम का मार्ग जाना नहीं जाता. राम चरित मानस का भी नहीं.
गुरुदेव रबिन्द्र नाथ टैगोर कहते है की मैं श्रेष्ठ का चुनाव नहीं कर सकता, श्रेष्ठ मुझे चुन सकता है.
राम अयोध्या में लोगो के घर नहीं गए, बच्चो से बात नहीं की. उन्होंने ऐसा मिथिला में किया, भक्ति के नाते.
राम नाम का फल समाधी है, समाधी का फल राम नाम है.
जब आप उद्विग्न होते है तो राम गुण गान करे, सतसंग करे या अकेले बैठकर हरि स्मरण करे.
शिव तत्व द्वार पर होता है और भक्ति तत्व घर में होता है पर उसका संयोग करने के लिए नारद जैसा सदगुरु चाहिए.
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