यदि सिद्धि में कोई अर्थ नहीं है तो सिद्धि की बात हनुमान चालीसा में कैसे?
भारद्वाज जी के आश्रम में भी सिद्धि की बात है.
सिद्धि का अर्थ है की भक्ति रस में सिद्ध हो जाए.
हमको अन्य सिद्धि मिल भी जाए तो भी हम पचा नहीं पाएंगे.
सिद्धि का अर्थ है हरिनाम लेते लेते भगवान का अस्तित्व प्रतीत हो.
भक्ति करते करते ताप का दूर होना ही संतत्व है.
मुझे सिद्धि नहीं चाहिए.
इश्वर कुछ ज्यादा दे तो मना करने की साधू में क्षमता होनी चाहिए.
हमें देशी गाय रखने से लाभ होगा हाथी मिल भी जाये तो क्या करना है.
रति याने हरिपद रति. प्रतिक्षण वर्धमान होने वाला, क्षण क्षण बढ़ने वाला भाव.
महादेव आपने काम को जलाया हमें रति दो.
भजन का कोई फल नहीं होता, जहा फल है वहा फस गए.
तप का फल है सर्जन, विलय.
योग का फल है समाधी.
गुरु से स्थूल सम्बन्ध नहीं, चैतसिक सम्बन्ध रखो.
गुरु कर्म नहीं देखता, करुणा देखता है.
महादेव के आगे गर्व नहीं चलता, स्वभाव चलता है.
भक्ति में मांग जबसे आई, भक्ति क्षीण, दुर्बल होने लगी.
राम भक्ति में हमारी सिद्धि हो. हमें श्रवण, कीर्तन, स्मरण, पाद सेवन, आत्म निवेदन में उसकी प्रतीति आये.
पाद सेवन माने वचनामृत की सेवा. गुरु के वचन को मानना.
आम का कोई आम नहीं होता, उसका रस होता है. फल की बात न करे.
आपन तेज सवारों आपै का अर्थ है अत्त दीप भव, आप खुद ही खुद के दीप बने.
राम भजन करने वाले को कर्म चाहिए फल नहीं, फल परेशान करेगा.
धर्म मुस्कुराये. साधना पद्धति मुस्कुराती हो.
बाह्य कर्मकांड स्थूल है, प्रतीकात्मक है, लोक संग्रह के लिए है. असली साधना तो भीतर होनी चाहिए.
कृष्ण रसरूप है. उसका भक्त कहलाने वाले रूखापन, क्रोध न करे.
साधक अपने आप से करे. खुद जागे. गुरु से विचार, दीक्षा तो मिल जाएगी पर आचार तो खुद करना होगा.
खुद को रंगे बिना दुसरो को रंग नहीं सकते.
वाल्मीकि रामायण परम मंदिर है.
तुलसी रामायण प्रवाहमान गंगा है. कोई भी जा सकता है. कभीभी स्नान कर सकता है.
कही बिधि कहु जाऊ अब स्वामी यह तुलसी की चौपाई तो गाव गाव तक, जन जन तक पहुच गयी. तुलसी रामायण हर कही पहुच गया.
ब्रह्म का लक्षण है व्यापकता.
पाद सेवन माने वचनामृत की सेवा. गुरु के वचन को मानना.
आम का कोई आम नहीं होता, उसका रस होता है. फल की बात न करे.
आपन तेज सवारों आपै का अर्थ है अत्त दीप भव, आप खुद ही खुद के दीप बने.
राम भजन करने वाले को कर्म चाहिए फल नहीं, फल परेशान करेगा.
धर्म मुस्कुराये. साधना पद्धति मुस्कुराती हो.
बाह्य कर्मकांड स्थूल है, प्रतीकात्मक है, लोक संग्रह के लिए है. असली साधना तो भीतर होनी चाहिए.
कृष्ण रसरूप है. उसका भक्त कहलाने वाले रूखापन, क्रोध न करे.
साधक अपने आप से करे. खुद जागे. गुरु से विचार, दीक्षा तो मिल जाएगी पर आचार तो खुद करना होगा.
खुद को रंगे बिना दुसरो को रंग नहीं सकते.
वाल्मीकि रामायण परम मंदिर है.
तुलसी रामायण प्रवाहमान गंगा है. कोई भी जा सकता है. कभीभी स्नान कर सकता है.
कही बिधि कहु जाऊ अब स्वामी यह तुलसी की चौपाई तो गाव गाव तक, जन जन तक पहुच गयी. तुलसी रामायण हर कही पहुच गया.
ब्रह्म का लक्षण है व्यापकता.
राम अवतार के चार कारण -
१. जय विजय को शाप.
जय विजय ने सनत कुमार को कैसे नहीं पहचाना? डयूटी बजाते वक्त विवेक रखना चाहिए.
२. जालंधर वृंदा का प्रकरण.
३. नारद का शाप.
४. मनु शतरूपा की तपस्या.
५. राजा प्रताप भानु का प्रकरण.
कौशल्या ज्ञान की धारा है उससे राम ब्रह्म के रूप में प्रकटे.
कैकेयी कर्म की धारा है उससे राम भरत याने विवेक के रूप में प्रकटे.
सुमित्रा उपासना की धारा है उससे राम लक्षमण अर्थात जागृती और शत्रुघ्न अर्थात मौन के रूप में प्रकटे.
ताडका यह कर्म का विध्वंस करने की धारा है वह रावण को सहायक हुई.
मंथरा ज्ञान का विरोध करने वाली धारा है. उसने भरत और राम में द्वैत देखा. वह राम को लोगो से दूर करने में सहायक हुई.
शूर्पनखा भक्ति की विरोधी है. उसने सीता को नष्ट करने की कोशिश की और रावण को सहायक हुई.
जय विजय ने सनत कुमार को कैसे नहीं पहचाना? डयूटी बजाते वक्त विवेक रखना चाहिए.
२. जालंधर वृंदा का प्रकरण.
३. नारद का शाप.
४. मनु शतरूपा की तपस्या.
५. राजा प्रताप भानु का प्रकरण.
कौशल्या ज्ञान की धारा है उससे राम ब्रह्म के रूप में प्रकटे.
कैकेयी कर्म की धारा है उससे राम भरत याने विवेक के रूप में प्रकटे.
सुमित्रा उपासना की धारा है उससे राम लक्षमण अर्थात जागृती और शत्रुघ्न अर्थात मौन के रूप में प्रकटे.
ताडका यह कर्म का विध्वंस करने की धारा है वह रावण को सहायक हुई.
मंथरा ज्ञान का विरोध करने वाली धारा है. उसने भरत और राम में द्वैत देखा. वह राम को लोगो से दूर करने में सहायक हुई.
शूर्पनखा भक्ति की विरोधी है. उसने सीता को नष्ट करने की कोशिश की और रावण को सहायक हुई.
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