Saturday 3 September 2011

Manas 700, Day 9 - Ram Katha by Morari Bapu at Kailash as far as I understood.

पाप करने से विवेक बुद्धि का नाश होता है. ऐसा होने से व्यक्ति बार बार पाप करने लगता है.

पुण्य करने से विवेक बढ़ता है.

प्रेम तपस्या का मार्ग है, भोग का मार्ग नहीं है.

राम ने शरयु से गंगा के तट तक रथ यात्रा की. शरीर रथ है, धर्म रथ. रथ में सबसे महत्त्वपुर्ण चक्के है. शौर्य और धैर्य इस रथ के पहिये है. सत्य और शील इसकी पताका है. परिणति सत्य में होनी चाहिए. धीरज शौर्यवाला हो कायरतावाला नहीं.

जीवन एक वन है. चौर्यासी लाख योनी का वन है.

बुद्धि याने विद्या ये नौका है. जमीन पर यात्रा सरल है. काल प्रवाह में यात्रा विद्या से ही हो सकती है.

राम ने पदयात्रा सत्ता का त्याग करने के बाद प्रेम और सत्य की प्राप्ति के लिए की.

आकाश यात्रा याने असंग यात्रा. संग याने आसक्ति.

श्रुन्गवेरपुर में प्रभु ने केवट का धन्यवाद किया, सबको गले लगाया.

भरत हनुमान से कहते है की मुझे लगता है की साक्षात् राम मिले है. तब प्रभु विमान से आ रहे थे पर हनुमान में बैठकर मिले.

पशु से मानव बनाने की विद्या है राम चरित मानस.

ग्लानी को समाप्त करना राम कार्य है.

राम सत्ता के पास नहीं गए. वशिष्ट जी ने उनके लिए सिंहासन मंगाया. जहा सत होता है वह सत्ता आती है.

मानस ७०० कथा के दौरान सात विशेष अनुभूति...
१. कृपा की विशेष अनुभूति
२. विशेष कलाओ की अनुभूति.
३. विशिष्ट कथा शैली.
४. काल की अनुभूति.
५. कीर्तन की अनुभूति.
६. शरीर होते हुए कैवल्य की अनुभूति.
७. कृत कृत्य भाव की अनुभूति.

जहा तक कदम चले आ गए है
अँधेरे हमें रास आ गए है

No comments:

Post a Comment